Samyak's Nook

ख्वाइश

कि बड़ी ख्वाइश तो नही हैं मेरे पास
छोटी-छोटी कई सारी ख्वाइशें है
लेकिन अब अफ़सोस होता है ये जानकर
कि इनमें से कोई भी ख्वाइश
सच में तो मेरी है ही नही!

कहीं से चुराई हुई, किसी की दी हुई
किसी को कही हुई, कहीं से टेपी हुई
दर्जनों की भीड़ में, अपने भार को बांटती
जहां जिसकी जैसी भी है
कहां किसकी कैसी है, पता नही

दे आओ उसे वापस, उसकी चहेती ख्वाइश
क्या उसको अपनी दुलारी की कमी खलती नहीं?
और अगर नही, तो मैं क्यों इसे समेट कर जाऊं
इससे उठाओ, तोड़ दूं या अपनाऊं
और अपनी ख्वाइश मैं किसे देकर आऊं?

क्योंकि बड़ी ख्वाइश तो नहीं हैं मेरे पास
छोटी-छोटी कई सारी ख्वाइशें हैं
ढूंढता रहूंगा अपनी बड़ी ख्वाइशों को शायद
क्योंकि इनमें से कोई भी ख्वाइश
सच में मेरी कभी थी ही नहीं!